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Saturday, October 3, 2009

राहुल गांधी जेएनयू और सवाल..

राहुल, जेएनयू और सवाल..

सुशील झा सुशील झा | गुरुवार, 01 अक्तूबर 2009, 22:05 IST

राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में दलितों की बस्ती से अब सीधे जेएनयू यानी जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय पहुंचे हैं. शायद ग़रीबों के साथ साथ बुद्धिजीवियों में भी पैठ बनाना चाहते हों. दलितों की बस्ती तो चुपचाप गए लेकिन जेएनयू पूरी सुरक्षा के साथ...

बुद्धिजीवियों से ख़तरा तो नहीं था... वैसे नेताओं को जेएनयू में हमेशा ख़तरा रहता है लेकिन जान का नहीं..बल्कि सवालों का...और उस ख़तरे से सामना राहुल का भी हुआ.

जैसाकि कहते हैं, जेएनयू वाले ताउम्र जेएनयू वाले रहते हैं. पत्रकारिता में आने के बाद भी मेरा इस संस्थान से नाता टूटा नहीं है और संयोग से उस दिन मैं वहीं मौजूद था.

तो पहले ये बता दूं कि राहुल के आने से पहले कैंपस में इतने पुलिसवाले पहुंच चुके थे जितने उनकी सभा में भी न पहुंचे थे. पार्टी वालों ने बड़ा सा पंडाल बनवाया था राहुल के लिए जो जेएनयू में कम ही होता है.

यहां बड़े बड़े नेता.. यहां तक कि दलाई लामा जैसी हस्तियां भी खुले में बात करती हैं... हां लेकिन फिर दलाई लामा या सीताराम येचुरी कांग्रेस पार्टी के युवराज भी तो नहीं हैं...

राहुल आए... एक छात्रावास में खाना खाने की इच्छा जताई... झेलम के छात्रावास में खाया और फिर पहुंचे छात्रों से मिलने...भाषण देने... भाषण भी दिया सवालों के जवाब भी दिए....लेकिन जेएनयू के छात्रों को प्रभावित करना इतना आसान शायद नहीं है.

राहुल को भी काले झंडे दिखाए गए लेकिन ये कोई नई बात नहीं थी क्योंकि यहां तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी काले झंडे दिखाए गए हैं.

जेएनयू की रवायत सवाल पूछने की रही है और राहुल को शायद ये पता था सो उन्होंने भी भाषण बीच में ही छोड़ा और बोले --- सवाल पूछो....जवाब देने के लिए मंच से उतर भी आए..

सवालों की झड़ी लगी.. कारपोरेट को टैक्स में छूट से लेकर गुटनिरपेक्षता, विदेश नीति, लातिन अमरीका पर भारत की नीति से लेकर वंशवाद पर भी सवाल पूछे गए...

विदेश नीति और आर्थिक मामलों से जुड़े सवालों पर वो कुछ गोल मोल सा ही जवाब देते रह गए... हर दिन मार्क्स, एडम स्मिथ और गॉलब्रेथ पढ़ने वालों को आप यूं ही कोई जवाब तो दे नहीं सकते सो ज़ाहिर था जवाबों से सवाल पूछने वाले असंतुष्ट ही रह गए....

फिर बारी आई कैंपस के एक चिर क्रांतिकारी की. उन्होंने तीखे अंदाज़ में सवाल दागा.... आपने कितने झंडे उठाए कहां नारे लगाए.. बस नेता बन गए.. परिवार की बदौलत.

राहुल थोड़ा रुके......कुछ सेकंड शांति हुई फिर बोले --- हां मैं परिवार से राजनीति में आया हूं लेकिन इस प्रथा को बदलने की पूरी कोशिश कर रहा हूं.

बदलाव की बात उनके पिता राजीव गांधी ने भी की थी लेकिन आगे वो नहीं कर पाए जो वो करना चाहते थे. क्या करते राजनीति के पेच में फंस जो गए......राहुल शायद अभी राजनीति के उन पेचों खम से अछूते हैं ...तभी सवाल सुनते हैं और जवाब देने की कोशिश भी करते हैं..

सवाल सुनने की ये आदत राजनीति में छूट जाती है.....देखते हैं राहुल कब तक ये आदत बरकरार रख पाते हैं.

news BBC

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